-कृष्ण कांत --
■ मार्च में भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने खुलासा किया था कि
भारत का रक्षा क्षेत्र कालाधन माफियाओं के हवाले हो चुका है।
रिपोर्ट में कहा गया कि
इलारा इंडिया मॉरीशस से चलने वाली एक फर्जी कंपनी है।
इसका अडानी डिफेंस फर्म में मालिकाना हिस्सा है।
अडानी डिफेंस फर्म भारतीय रक्षा मंत्रालय, डीआरडीओ, इसरो के साथ काम करती है।
यानी भारत के रक्षा क्षेत्र में कालेधन का स्वर्ग कहे जाने वाले मॉरीशस से आपरेटेड फर्जी कंपनियों की घुसपैठ हो चुकी है।
इलारा इंडिया को इलारा कैपिटल नाम की एक दूसरी शेल कंपनी मैनेज करती है।
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी से जुड़ी जिन 38 शेल कंपनियों का जिक्र है उनमें इलारा कैपिटल प्रमुख कंपनी है।
यह अडानी समूह में 24,766 करोड़ का निवेश करती है जो उसकी कुल पूंजी का 99% है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट की मानें तो टैक्स हैवेन देशों से चलने वाली कम से कम 38 शेल कंपनियों का पता चला है और ये सभी अडानी के भाई से जुड़ी हैं।
इन कंपनियों का धर्मेश दोषी और केतन पारेख जैसे जालसाजों से भी गहरा रिश्ता है।
अब सवाल है कि अडानी ग्रुप में यह लाखों करोड़ का बेनामी धन, यानी कालाधन किसका है?
यह कहां से आ रहा है? यह सफेद होकर कहां जा रहा है?
ये कंपनियां अडानी से क्यों जुड़ी हैं?
अगर अडानी ग्रुप में शेल कंपनियां जुड़ी हैं तो भारत की एजेंसियां उनपर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही हैं?
उन्हें भारत सरकार अपने ठेके क्यों दे रही है?
सरकार इस मसले पर संसद में चर्चा क्यों नहीं होने दी?
सरकार ने इस मामले में जेपीसी जांच क्यों नहीं होने दी?
एक भ्रष्ट कारोबारी को सरकार ने क्यों बचाया?
भारतीय रक्षा क्षेत्र में शेल कंपनियों को किस ईमानदार ने घुसाया?
ये सवाल उठाने वाले राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा को संसद से निकाल दिया गया।
यह सब उसी देश में हो रहा है जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ नूराकुश्ती चल रही है।
जनता का ध्यान भटकाया जा रहा है। असली भ्रष्टाचार कहीं और हो रहा है। इस देश को लुटेरों और धनपशुओं के हाथ गिरवी रख दिया गया है।
मकसद सिर्फ इतना है कि उनकी कुर्सी बची रहे।