प्रधानमंत्री के हाथ में खाली फोल्डर

 


*इस तस्वीर में प्रधानमंत्री के हाथ में खाली फोल्डर देखकर मैं कल रात सटायरिकल था।*

*लेकिन यही पिछले 10 साल का सच है। प्रधानमंत्री के पास भारत की आम जनता के लिए कुछ नहीं है।*

*सब–कुछ अदानी और अंबानी के लिए है। बावजूद इस खाली फोल्डर के, प्रधानमंत्री कल नई संसद में तीसरी इकॉनमी की बात फिर कर गए।* 

*यह जानते हुए भी कि जीडीपी के अनुपात में देश की बचत 50 साल के सबसे निचले स्तर पर है।* 

*2021–22 में यह 7.9% थी, जो 2022–23 में 5.1% थी।* 

*पाई–पाई जोड़ने की भारतीय संस्कृति कहां गुम हो गई? क्यों फटी धोती पर टांके जोड़कर बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने वाला समाज आज भिखमंगा हो गया?* 

*2020–21 में भारतीय परिवारों ने 22.8 लाख करोड़ जोड़े।*

*2021–22 में यह आंकड़ा 16.96 लाख करोड़ पर आ गया।*

*2022–23 में और गिरकर 13.76 लाख करोड़ हो गया।* 

*लेकिन जुलाई 2022 में इन्हीं परिवारों ने 35.94 लाख करोड़ का पर्सनल लोन लिया। जुलाई 2023 में आंकड़ा उछलकर 47.31 लाख करोड़ पर पहुंच गया।*

*कल अंजना ओम कश्यप उछल–उछलकर अपने एआई प्रोग्राम्ड रोबोट को आज तक पर दिखा रही थी।* 

*दरअसल, रोबोट को मोदी सत्ता से कड़वे सवाल पूछने के लिए प्रोग्राम ही नहीं किया गया है।* 

*मीडिया में एआई तकनीक का दलाली संस्करण घुस चुका है। इसे आप रिपोर्टिंग पर नहीं भेज सकते। हां, स्टूडियो में बिठाकर सत्ता को तेल मालिश जरूर करवा सकते हैं।* 

*अगर आप इसी अवधि में औद्योगिक कर्ज को देखें तो जुलाई 2022 में यह 31.82 लाख करोड़ था, जो जुलाई 2023 में 33.65 लाख करोड़ है।* 

*साफ है कि देश के 50 करोड़ लोग ज़िंदा रहने के लिए बचत से 4 गुना ज्यादा कर्ज ले रहे हैं, जो वे फंदे में झूल जाने पर भी नहीं चुका सकेंगे।* 

*दूसरी ओर, लोन माफी और टैक्स माफी की कमाई से सत्ता को टुकड़े फेंककर कॉर्पोरेट्स मलाई चाट रहे हैं।*

*और फिर जनता से लूटकर यही कॉर्पोरेट्स लोन भी बांट रहे हैं।* 

*इस देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और अमीर–गरीब के बीच बढ़ता फासला भयावह है।* 

*लेकिन, सत्ता की दलाली करने वाले 14 एंकरों पर पाबंदी से तिलमिलाए बीईए ने कल बैन उठाने की मांग की है। सुप्रियो प्रसाद जैसे तलवाचाट ने मीटिंग बुलाई थी।* 

*क्या इनके पास वे आंकड़े नहीं है, जो मेरे पास हैं? बिल्कुल हैं। लेकिन इन्होंने अपनी रीढ़ बेच खाई है। ईमान बेचा है।* 

*देश, समाज, कानून, व्यवस्था, लोकशाही–सब धंस चुकी है।*

*अगर कुछ है तो बस तमाशा, जलसा, प्रचार। जनता को तो अचार भी नसीब नहीं।* 

*लेकिन, सोशल मीडिया जिंदा है।*

*पूछिए, अपने हिस्से के सवाल।*

*बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी।*

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