दुनियाभर में राजनेता जन-सरोकारों तथा समसामयिक विषयों पर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए अपने मन की बात जाहिर करते हैं जिससे उनके अध्ययन, सोच, समझ, सुझाव और योजनाओं की जानकारी मिलती है।
राहुल गाँधी को कल 'प्रतिदिन मीडिया नेटवर्क' के कॉन्क्लेव 2023 में दूसरे दिन के पहले सत्र में ऋषि बरुआ के सवालों का जवाब देते हुए देखा-सुना।
उन्होंने पूरे 53 मिनट तक बरुआ के मुश्किल से मुश्किल सवालों का मुस्कुराते हुए जिस तरह जवाब दिया वह बेमिसाल है।
देश की अर्थव्यवस्था पर राहुल गाँधी का अध्ययन और गंभीर चिंतन सचमुच प्रशंसनीय है। उन्होंने महिला आरक्षण को बिना जातीय आधार पर जनगणना और निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन को दस साल तक लटकाए रखने का बहाना बताते हुए एक बार फिर कहा कि यह इसके बिना आज भी उन्हें 33% सीधे-सीधे दिया जा सकता है, हम सभी सरकार का समर्थन करेंगे।
उन्होंने जातीय आधार पर जनगणना को जरूरी बताया और कहा कि इसके बाद ही हम दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की वास्तविक संख्या के आधार पर उनके तथा आमजन के लिए कल्याणकारी योजनाएं तैयार कर सकते हैं।
राहुल गाँधी ने पहले की तरह अडाणी के मुद्दे पर सरकार की खिंचाई करते हुए उसके फैसलों को 'फ्रेंडली मोनोपॉली' बताया।
बरुआ ने राहुल गाँधी से देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, अंतरराष्ट्रीय राजनय, कांग्रेस से लेकर उनके निजी जीवन से जुड़ी आदतें, पसंदीदा खाना, पहनावा, खेल, खिलाड़ी, फिल्म आदि हर विषय पर सवाल पूछे, जिनका उत्तर उन्होंने बड़ी सहजता से दिया।
राहुल गाँधी की सहजता, गंभीरता, जनता के प्रति दायित्वबोध, मुद्दों पर मीडिया से बेलाग बात करने की क्षमता और तरीक़ा बिल्कुल क़ुदरती है। कहीं कोई बनावटीपन या हल्कापन नहीं। वे एक राजनीतिक नेता से बहुत अलग एक जिम्मेदार सामाजिक कार्यकर्ता नज़र आते हैं।
अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद सचमुच राहुल गाँधी में जबरदस्त परिवर्तन परिलक्षित होता है। एक राजनेता को ऐसा ही गहरे अध्ययन-चिंतन, खुले दिल-दिमाग वाला और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाला होना चाहिए।
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