क्या दलित उत्पीड़न के शिकार परिवार के साथ खड़े होना नक्सली हो जाना है?,,,,,,
डॉक्टर राजकुमारी बंसल पेशे से डॉक्टर के साथ वह एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वयं दलित परिवार से है। उसे नक्सलियों से जोड़ना उसकी प्रतिष्ठा एवं स्वतंत्रता पर हमला कर उसे झूठे केस में फंसाने की उत्तर प्रदेश सरकार पुलिस प्रशासन की साजिश है।,,, विजय बौद्ध संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9424 75 61 30
जब से देश में R.S.S,नरेंद्र मोदी की मनुवादी सरकार बनी है, तब से सबसे पहले दलितो ,बहुजनो को निशाना बनाकर उन पर जातीय हिंसा ,हमले और उनका उत्पीड़न किया जा रहा है,। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला का उत्पीड़न हुआ,उसे आत्महत्या करने मजबूर कर दिया गया ,या फिर सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उसकी हत्या कर दी गई, ।उसका उत्पीड़न इसलिए हुआ ,क्योंकि वह सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में हुए दंगों के खिलाफ आवाज उठाई थी, वह झूठे आतंकवाद के खिलाफ उसका संघर्ष था, वह निर्दोष मुसलमानों के लिए आवाज उठाता था, दलितों पर जुल्म के विरोध में लड़ाई थी, उसकी,, इसलिए उसे हमेशा के लिए दफन कर दिया गया था,भीमा कोरेगांव में 200 वर्ष पूर्व बाजीराव पेशवा एवं महार सैनिकों के साथ युद्ध हुआ था। जिसमें 28000 ब्राह्मणों को 500 महार वीर सैनिकों ने परासत कर उन्हें मार डाला था। अपने पूर्वजों की स्मृति में देश का बहुजन समाज 1 जनवरी को, भीमा कोरेगांव में शौर्य दिवस, विजय दिवस के रूप में मना रहा था। 3 वर्ष पूर्व 200वी वर्षगांठ मना रहा था ।जिसे दुनिया भर के लोगों ने ऐतिहासिक बनाया था। उस ऐतिहासिक दिवस शौर्य दिवस के अस्तित्व को मिटाने के उद्देश्य से आर एस एस ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत बहुजनो पर पथराव जातिय हमले ,हिंसा को अंजाम दिया गया था। इस हमले का मास्टरमाइंड, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरु ब्राह्मण संभाजी भिड़े थे। इसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज हुई, परंतु आज तक उसकी गिरफ्तारी नहीं हुई। उसके गिरफ्तारी के लिए कई ऐतिहासिक आंदोलन महाराष्ट्र में हुए, फिर भी वह आजाद पंछी की तरह मनुवादी सरकार में खुलेआम घूम रहा है,वही भीमा कोरेगांव के जातिय हिंसा हमले पर पर्दा डालने, मानवाधिकार कार्यकर्ता बुद्धिजीवी, सुधा भारद्वाज वेरनॉन, अरुणपरेरा,गौतम नवलखा, वरवर राव जैसे मानवतावादी विचारोंको को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के कथित झूठी साजिश के तहत उन्हें भी अर्बन माओवादी नक्सली घोषित कर,जेल भेज दिया गया है। वह 2 साल से जेल में है। कल ही दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से अमेरिका के उनके एक दोस्त के जरिए मुलाकात के संबंध में आरोप पत्र एनआईए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मुंबई के विशेष एनआईए कोर्ट में दाखिल किया है। जिसमें सभी आरोपियों की भूमिका को जातीय आधार पर हिंसा की योजना बनाने के आरोप है। इस आरोप पत्र में डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर के एकदम करीबी रिश्तेदार डॉ आनंद तेलतुमबड़े भी शामिल है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के हाथरस दलित लड़की के उत्पीड़न दरिंदगी मामले में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद सहित सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ताओं पर जातीय नफरत फैलाने का झूठा आरोप लगाकर उन पर केस दर्ज करा दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश मे गुंडाराज,जंगलराज,रामराज्य चल रहा है।
सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश हित में आवाज उठाने वाले राष्ट्र भक्तों, डॉ कपिल खान, पूर्व आईपीएस अधिकारी, अंबेडकरवादी विचारक, एस आर दारापुरी एवं भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद पर रासुका लगा कर उन्हें भी जेल में ठूंस दिया गया था। आर एस एस सरकार, उनकी जांच एजेंसी ,के नजरों में जो भी मानवाधिकार, कार्यकर्ता, समाजसेवी,बुद्धिजीवियों, के समूह है। वह सब नक्सली ,माओवादी है,और उनका संबंध माओवादियों से है। तथा वे ही जातिय नफरत,हिंसा फैलाते हैं। इसी तरह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर के फार्मोकोलॉजी विभाग की डॉक्टर राजकुमारी बंसल जो पेशे से एक डॉक्टर और फॉरेंसिक विशेषज्ञ है। तथा वह भी दलित समाज से है। और एक सामाजिक कार्यकर्ता है। जिसने हाथरस उत्तर प्रदेश में अपने समाज की बेटी एवं उसके परिवार के साथ हो रहे अत्याचार अन्याय के समर्थन में क्या उनके साथ 2 दिन बिताए उसे भी उत्तर प्रदेश की सरकार ,पुलिस प्रशासन, नक्सलियों से जोड़कर उसे झूठा फंसाने की साजिश रच रही है। डॉक्टर राजकुमारी बंसल के इंटरव्यू का प्रकाशित वीडियो एवं कल दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के बाद, मैंने कल उनसे मोबाइल फोन पर चर्चा किया था। चर्चा के दौरान डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने बताया कि वह स्वयं दलित एवं सामाजिक कार्यकर्ता है। तथा फॉरेंसिक की विशेषज्ञ है। हाथरस में मेरे समाज के बेटी के साथ अत्याचार हुआ और उस अत्याचार पर पर्दा डाल कर दुष्कर्म केस को किस तरह ऑनर किलिंग में बदला जा रहा है, इसलिए मैं उस पीड़ित परिवार से मानवता के नाते तथा समाज की बेटी और सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते हाथरस उनके घर गई थी। पुलिस का आरोप ,कथित भाभी, जांच से पहले लापता हो गई। यह कितना घटिया और बेतुका बेबुनियाद आरोप है। मैं क्या जीवन भर हाथरस रहने गई थी? मुझे उनसे मिलना था। उन्हें इस दुखद घड़ी में साहस हिम्मत देना था। इसलिए मैं वहां गई थी। और उनसे मिलकर मैं जबलपुर आ गई। और अपने कार्य पर हूं ।लापता होने की बात कहां से उत्पन्न होती है? पुलिस जब यह जानती है कि मैं मेडिकल कॉलेज जबलपुर में डॉक्टर हूं,फिर मुझ पर नक्सलियों से संबंध और लापता होने का संदेह कैसे कर सकते हैं?और ऐसा करके उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार मेरी प्रतिष्ठा धूमिल कर मुझे समाज में नीचा दिखाने का घृणित कृत्य कर रही है। मेरी उस परिवार से कोई रिश्तेदारी नहीं है।
और ना ही मैं किसी की भाभी हूं। मैं तो पीड़िता समाज की बेटी है, इसलिए मानवता के नाते पीड़ित परिवार से मिलने गई थी। मेरा किसी नक्सलियों से कोई संबंध नहीं है। और ना मैं लापता हुई हूं। यदि मुझे इसी तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया तो मैं, इसे बर्दाश्त नहीं करूंगी। भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष डॉ वेद प्रताप वैदिक की अभिव्यक्ति 8 अक्टूबर को दैनिक भास्कर ने बड़े ही प्राथमिकता से प्रकाशित की है।, सबसे पहले मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं। कि उन्होंने इंसाफ के लिए अपनी आवाज उठाई, और सरकार को उन्होंने दिशा दिया है। और अखबार ने भी इसे प्रकाशित किया है। इसके लिए वह भी धन्यवाद के पात्र है। प्रकाशित अभिव्यक्ति में डॉ वेद प्रताप वैदिक ने कहा है कि, उत्तर प्रदेश हाथरस की दलित कन्या के साथ चार नर पशुओं ने जो कुकर्म किया है, यह दुष्कर्म और हत्या दोनों है। इस सारे मामले में हाथरस की पुलिस और डॉक्टरों के रवैया ने सरकार की प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दिया है। 14 सितंबर को अपने गांव की दलित कन्या के साथ उच्च जाति के चार नर पशुओं ने दुष्कर्म किया, उसकी जुबान काटी, और उसके दुपट्टे से उसको घसीटा गया, अस्पताल में ठीक से इलाज नहीं किया गया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। पुलिस ने 1 हफ्ते तक इस जघन्य अपराध की रिपोर्ट तक नहीं लिखी, और फिर पुलिस ने आधी रात को उसका शव को आग के हवाले कर दिया। उसके परिजनों के मर्जी के विरुद्ध,,,,, योगी सरकार इस घटना पर पर्दा डालने वाले पुलिस प्रशासन पर कार्यवाही करने के बजाए इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विपक्ष के नेताओं के खिलाफ जातीय नफरत हिंसा फैलाने के आरोप लगाकर उनके खिलाफ झूठे मुकदमा दर्ज कर रही है। और उन्हें नक्सली करार देने की साजिश रच रही है। इस मामले में पुलिस प्रशासन का अपराध दुष्कर्मीयों से भी कम नहीं है।सबसे शर्मनाक बात यह है कि, पीड़िता की जांच के बाद कहा जा रहा है, कि उसके साथ दुष्कर्म के प्रमाण नहीं मिले। क्या दुष्कर्म के प्रमाण 11 दिनों तक टिके रह सकते हैं? जबकि पीड़िता ने अपनी मौत के पूर्व स्वयं दुष्कर्म की बात कही है। और उन नर पशुओं के नाम बताएं, मरने के पहले जो बयान दिया है,उस पर संदेश नहीं किया जा सकता। डॉ वेद प्रताप वैदिक ने सरकार को चेताया और सुझाव भी दिया है। इन हत्यारों चारों ढोरो को ऐसी सजा दी जानी चाहिए ,ताकि भविष्य में पुनरावृति न हो। उन्हें हाथरस के व्यस्त चौराहे पर फांसी पर लटकाना चाहिए, उनकी लाशों को कुत्तों से घिसीटवाकर जंगल में फेंक देना चाहिए। और इस सारे दृश्य का भारत के सभी टीवी चैनलों पर जीवंत प्रसारण किया जाना चाहिए । तभी उस दलित युवती की हत्या का प्रतिकार होगा। सरकार और पुलिस प्रशासन अपराधियों को बचाने नए-नए हथकंडे अपना रही है। और जो पीड़िता के परिवार के साथ खड़े हैं ,उन पर जातीय नफरत हिंसा फैलाने का झूठाआरोप लगा रही है, तो किसी को नक्सलियों से जोड़कर उन्हें फंसाने का षड्यंत्र पाप कर रही है। पीड़िता के साथ उसके परिवार के साथ अन्याय हो अन्यथा इसका दुष्परिणाम, ज्वालामुखी की तरह विस्फोटक होगा।।।।,,, जो भी इस उत्पीड़न अन्याय अत्याचार के खिलाफ खड़े हैं मैं उनके समर्थन में उनके साथ में हूं लिखता रहूंगा लिखूंगा।,,,,