महिला आरक्षण विधेयक, 2023 पर अखिल भारतीय क्रान्तिकारी महिला संगठन (AIRWO) का बयान
महिला आरक्षण विधेयक - सशक्तिकरण के बजाय दिखावा!
19 सितम्बर, 2023 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की संसद में महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) पेश किया। विशेषकर महिलाओं के सामाजिक सशक्तिकरण के नजरिए से, यह उन विधेयकों में से एक था जिसका लम्बे समय से इंतजार किया जा रहा था। लेकिन, यह अपने लक्ष्य पूरा होने की बजाय, एक तमाशा बनकर सामने आया है! इस विधेयक के माध्यम से संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया जाना था। यह पहली बार नहीं है जब यह विधेयक संसद में पेश किया गया है। इसे पहली बार 1996 में देवेगौड़ा सरकार के समय पेश किया गया था, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण यह असफल रहा और यह दिन की रोशनी नहीं देख पाया। बाद में इसे कई बार पुनः प्रस्तुत किया गया। इसे आखिरी बार यूपीए-2 सरकार के समय पेश किया गया था। और अब जब इसे पेश किया गया है तो इसमें स्पष्ततः कुछ अलग धाराएं जोड़ दी गई हैं जिसने इसे राज्य सत्ता में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के बजाय एक राजनीतिक उपकरण बना दिया है।
मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए नए विधेयक के पांचवें पैराग्राफ में कहा गया है कि इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। साथ ही, यह भी कहा गया है कि ‘‘महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण से संबंधित संविधान का यह प्रावधान ... संविधान (128वां संशोधन) अधिनियम 2023 के प्रकाशन के पश्चात होने वाली पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़ों को लेकर इस उद्देश्य से शुरू किए गए परिसीमन की कवायद के बाद लागू होगा।’’ जैसा कि हम जानते हैं कि अंतिम प्रभावी परिसीमन 1973 में किया गया था। और भारत का अंतिम परिसीमन आयोग वर्ष 2002 में गठित किया गया था। उसके बाद से अब तक परिसीमन प्रक्रिया लम्बित है। हालाँकि अगला परिसीमन आयोग 2026 में प्रभाव में आएगा, लेकिन यह अनिश्चित है कि यह कब पूरा होगा। इस विलम्ब से महिला आरक्षण के लिए प्रभावी समय अवधि कम हो जाएगी क्योंकि विधेयक के अनुसार अधिनियम लागू होने के 15 साल बाद आरक्षण का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। और इस परिप्रेक्ष्य में यह तय है कि यह कथित विधेयक किसी भी तरह से 2024 में आगामी आम चुनाव में लागू नहीं होगा।
संक्षेप में, विधेयक को परिसीमन और जनगणना से जोड़ने से यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार संसदीय शक्ति के मूल में महिलाओं को आरक्षण देने की इच्छुक नहीं है। प्रस्तावित विधेयक और कुछ नहीं बल्कि आगामी चुनाव से पहले महिला वोटों को आकर्षित करने का एक राजनीतिक करतब मात्र है। यह उस पार्टी से हमेशा की तरह अपेक्षित है जो बृजभूषण सरन सिंह जैसे महिला उत्पीड़नकर्ता को खुले तौर पर संरक्षण देती है। यह उस पार्टी से हमेशा की तरह अपेक्षित है जो उन नीतियों को बढ़ावा देती है जिसके परिणामस्वरूप मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ व्यापक हिंसा हुई। यह उस पार्टी से हमेशा की तरह अपेक्षित है जो खुलेआम अल्पसंख्यक महिलाओं पर अत्याचार की वकालत करती है! बिलकिस बानो के बलात्कार के आरोपियों की रिहाई का जश्न मनाने वाली पार्टी से हमेशा की तरह यही उम्मीद की जाती है।
जहां तक महिला आरक्षण का सवाल है तो भाजपा सरकार ऐसा अपनी प्रतिबद्धता की वजह से नहीं कर रही है। केवल हम, महिलाएं ही, उन्हें मजबूर कर सकती हैं। आइए हम एक स्वर में आवाज उठाएं!
दीपा
महासचिव
अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन (AIRWO)
(सितम्बर 2023)