जाग उठो नौजवानों...यह _'फॅसिझम'_ ही है...!

 जाग उठो नौजवानों...यह _'फॅसिझम'_ ही है...!

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*बकबक क्वीन* कंगना को मुंबई मे दाखिल होने के लिये देश कें गृहमंत्री अमित शाह ने 'वाय-प्लस' सुरक्षा मुहैया करा कर यह जताने की कोशिश कि है की केंद्र सरकार के सामने राज्य सरकार का अस्तित्व नगण्य है। 


हालांकी, हमारे देश का संविधान राज्य सरकार को केंद्र सरकार से बराबरी का हिस्सेदार मानता है, आर.एस.एस बनाम भाजपा ने केंद्रीय सत्ता मे आते ही देश की इस फेडरल प्रणाली को तोड उसे यूनिटरी बनाने की पुरजोर कोशिश शुरू की है। संविधान द्वारा प्राप्त यह फेडरल प्रणाली आर.एस.एस को हमेशा से ही ना गंवार रही है। हिटलर और मुसोलिनी को आदर्श माननेवाले उनके नक्शेकदम पर चलना ही तो पसंद करेंगे ना..


कश्मीरसे धोखाधडी कर 370 हटाना भी इसी साजिश का भाग है। 


देश की आजादी एवं बंटवारेके वक्त अंग्रेजो के अधिकारक्षेत्र मे जो भूभाग सीधे तौर पर उसके नियंत्रण मे था वह 'ब्रिटिश इंडिया' उनकी खिंची लकीर से भारत और पाकिस्तान इन दो हिस्सो में बंट गया। इसके अलावा अंग्रेजो के अधिकार क्षेत्र में कुछ तीनसौ - साडे तीनसौ ऐसी रियासतें भी थी जिनपर उनका सीधा नियंत्रण न था। इन रियासतों को यह मौका था की वह अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान जिसमें चाहे शामिल हो जाये। 


जम्मू-कश्मीर, जुनागढ और हैद्राबाद इन तीनो रियासतों में राजा एक धर्म का तो प्रजा दुसरे धर्म की थी और चुंकी बंटवारा सिर्फ और सिर्फ धर्म के नाम पर ही हुआ था, ईन रियासतो के राजा को अपने निजी धर्म के साथ जाना है या प्रजा के इस बात को लेकर खासी परेशानी थी । उदाहरण के तौर पर, जैसे ही जुनागढ के राजा ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लेकर पाकिस्तान के साथ संधी पर हस्ताक्षर कर लिये जुनागढ  की आवाम ने बगावत कर डाली और राजा को अपना फैसला बदलकर भारत में शामिल होना पडा। जम्मू-कश्मीर का मामला तो और भी पेचीदा था...भौगोलिक स्थिती से दिल्ली की तुलना में लाहोर से बेहतर जुडे होने की वजह से वहाँ के राजा हरी सिंह की पहली पसंद पाकिस्तान थी तो आवाम के पसंदीदा शेख अब्दुल्ला को धार्मिक पाकिस्तान नहीं तो गांधी-नेहरूवाला सेक्युलर भारत चाहिये था। वैसे राजा हरी सिंह और शेख अब्दुल्ला दोनों को ही कश्मीर का अपना स्वतंत्र वजूद बरकरार रखना था। इन सब के चलते जम्मू-कश्मीर भारत में शामिल हुआ जरुर पर अपनी शर्तों के साथ। उन शर्तों का ही एक भाग संविधान का आर्टिकल 370 था। केंद्र की सरकार गर जम्मू-कश्मीर की स्थिती में कोई भी बदलाव लाना चाहे तो उसे वहाँ के *अवाम की 'हामी' लेना अनिवार्य था।* भाजपा ने जम्मू-कश्मीर की राज्यसरकार गिरा दी..वहाँ राष्ट्रपती शासन लाया..वहाँ के नेताओं को गिरफ्तार कर अपनेही राज्यपाल की मदद से संसद में कानून पारित कर 370 हटाया। जम्मू-कश्मीर में राज्यसरकार नहीं होने की वजह से राज्यपाल ही अवाम की आवाज बन गये...अत: जम्मू-कश्मीर में बदलाव लाने के लिये 'अवाम की हामी' की अनिर्वायता राज्यपाल से पुरी की गई और इस तरह संविधान की तकनीकी खांमीयो का दुरुपयोग कर धोखाधडी से भाजपाने 370 हटाया। 


_जब भी किसी देश की सरकार  अपने ही राज्य की सरकारो को नीचा दिखाने लगे...उन्हें अपने पैर की जुती समझने लगे...संविधान से निर्धारित फेडरल प्रणाली को तोड उसके जगह यूनिटरी सिस्टीम लाना चाहे तो मान लो *'फॅसिझम'* आ गया है..._ 


*नागरिकता कानून (CAA) 2019 :* गैरकानूनन घुसपैठीयो को उनके धर्म पर आधारित नागरिकता बांटने वाला इस देश मे बना पहला कानून...भाजपा ने यह कानून लाकर देश के धर्मनिरपेक्ष वजूद को खतम कर देश में मनुस्मृती आधारित हिंदू राज लाने की और एक जोरदार कदम रखा है। आर.एस.एस की इस नापाक मंशा को भांपे लोगों ने इस कानून के विरोध में आंदोलन शुरू किया...आंदोलन को तोडने के लिये भाजपाईयो ने भडकावू भाषण कर दंगा लगाया जिसमें कम से कम ४०-५० लोग मारे गये...दिल्ली के दंगा पिडितोने दंगा भडकाने वाले भाजपाई कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के खिलाफ पुलिस में, मोदी के PMO मे पच्चासौ शिकायते दर्ज कराई पर कोई कार्यवाही नहीं हुई..जब बात अदालत पहूंची तो पुलिस ने वह भडकावू भाषण, जो रोज टीवी पर दिखाये जा रहे थे, देखे ही नहीं ऐसी भूमिका ली।  अदालत ने वहीं पर वीडियो चलाकर भडकावु भाषण पुलिस को दिखाये और तुरंत FIR दर्ज करने की हिदायत दी। दुसरे दिन पुलिस ने अदालत को बताया की अभी माहौल खराब है और ऐसें वक्त भाजपाईयो पर FIR दर्ज करना सही नहीं। आज ७ महिने बाद पुलिस अदालत को बता रही है की उसने छानबीन कर यह पता लगाया की इन भाजपाईयो का दंगा भडकाने मे कोई हाथ नहीं और उसी समय देश के मान्यवर राजनेता जैसे सिताराम येचुरी, योगेंद्र यादव  अर्थशास्त्री जयती घोष आदी. प्रख्यात लोगों का नाम चार्जशीट मे दर्ज कराया।


_जब सत्ताधारी पार्टी के लोगों को धर्म के नाम पर दंगा भडकाने की खुली छुट मिल जाये...सत्ताधारी पार्टी मायने खुद देश बन जाये और उसके गलत फैसलो का विरोध  देशद्रोह ...तो समझ लेना *'फॅसिझम'* आ गया है..._


०१ जानेवारी २०१८ को महाराष्ट्र, पूना के नजदीक कोरेगांव-भीमा इस जगह जातीवादी सवर्ण गुंडो ने वहाँ पर आये दलितों पर धावा  बोल दिया...जमकर पथ्थरबाजी कर उन्हें लहुलुहान कर दिया...इन सबके पीछे मोदी का गुरु मेंटल भिडे का हाथ होने के पुख्ता सबुत होने के बावजुद (पुलिस FIR मे उसका नाम होते हूये भी), मेंटल भिडे को महज पुछताछ के लिये भी पुलिस ने बुलाया नहीं और डॉ. आनंद तेलतुंबडे, सुधा भारद्वाज, वर्णन गोन्साल्वीस, गौतम नवलखा जैसे बुजुर्ग विद्वानों को कोरेगांव-भीमा दंगा (दंगा जो हुआ ही नहीं...दलितों पे किया गया योजनाबद्ध एकतर्फा हमला...) भडकाने के फर्जी केस में सलाखों के पीछे डाल दिया। गौरतलब रहे की यह सभी लोग सत्ताधारीयो के गलत कामो के खिलाफ खुलकर बोलते, लिखते थे...शोषित-पिडीत वर्ग के लोगों मे काम करते थे....


_जब अपने इशारों पे नाचने वाले गुंडे बदमाशो को सत्ताधारी शरण देने लगे और उनकी गलत नीतीयो का भंडाफोड करनेवाले विद्वानों के लब सीने लगे तो समझ लेना *'फॅसिझम'* आ गया है...._


देश के सारे नैसर्गिक संसाधनो पर सरकारी मदद से पुंजीपतीयो द्वारा कब्जा...मिडिया को खरीद सत्ताधारीयो की गलतीयां छीपाकर उनकी नकली 'ईमेज  बिल्डिंग' के लिये पुंजीपतियो की सारी कवायदे...जब देश करोना से जुझ रहा था...देश की जनता दिन-भर-दिन गरीब होने लगी थी...बेरोजगारी चरमसीमा पर पहूंच रही थी ठीक उसी वक्त यही पुंजीपती दोस्त दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में उपर की और खिसकने लगे थे... _*सत्ताधारीयो और पुंजीपतीयो की ऐसी साठगांठ* जिसमें आम जनता बरबाद हो जाये और पुंजीपती आबाद *'फॅसिझम'* आने की चेतावनी ही तो है..._


*जब* देश की सारी राजनीती किसी एकही व्यक्ती के इर्द-गीर्द घुमने लगे...


विरोधी पक्ष की अहमीयत सिर्फ नाम के लिये ही रह जाये...


संसद में बहस का सिलसिला खत्म हो जाये...


किसी पशू की किंमत इन्सान (दलित और मुसलमान) की जान से ज्यादा बन जाये...


देश के राजकारण पर बहुसंख्यांको का धर्मकारण हावी हो जाये... 


देश महज एक धर्म का भाग लगने लगे...


2020 का भारत 1930 की जर्मनी लगने लगे...


किसी व्यक्ती का चेहरा बारबार  हिटलर की याद दिलाये...


बहुसंख्याकवाद सर चढकर बोलने लगे...


हर चीज में धर्म दिखने लगे...


खुनी, बलात्कारी, गंवार लोग 'नायक' और, सत्ताधारीयो की नीतीयो से असहमती दिखाने वाले, 'पढे-लिखे' लोग 'खलनायक' करार किये जाये...


मठ में भजन करनेवाले भोगी  सरकार चलाने लगे...


कानून बस सत्ताधारीयो के हात की कठपुतली बन जाये...


बहुसंख्याक 'धर्म का ज्वर'  इस कदर बढ जाये की रोजमर्या की परेशानी भी ना दिखे...


मिडिया बस सत्ताधारीयो का 'तोता' बन जाये...


सत्ताधारीयो के तलवे चाटना 'देशभक्ती' और उनको सवाल करना 'देशद्रोह' कहलाने लगे...


देशभक्ती में अचानक बेवजह उफान आ जाये...और प्रजातंत्र नाममात्र बन जाये...


तो समझ लेना यकीनन _*'फॅसिझम'*_ आ गया है...


याद रहे हिटलर को रेडिओ से बेहद प्यार था और वह अकसर रेडिओ पर अपने *'दिल की बात'*  सुनाता था...


मिलिंद भवार 

_पँथर्स_ 

9833830029 

30 सप्टेंबर 2020